वो बेबाक चंचल सी,,
उड़ती मानो तितली सी,,
पापा की वो परी है,,
माँ के लाडो में बढ़ी है,
आंखों में कई सपने लिये,,
अपने घर से वो चली है,,
इस बेरहम दुनिया से अंजान,,
उनके नापाक इरादों से अंजान,,
बस अपने सपनो का पीछा किये,,
वो चलती गयी,आगे बढ़ती गयी,,
वो शायद कयामत की रात होगी,,
जो ना उसने,ना किसी और ने सोची होगी,,
वो दरिन्दो की काली नज़र,,
वो उनके इरादों का कहर,,,
हसती खेलती जान को चीड़ गया,,
पल भर में सब बिखर गया,,
तेजाब की बूंद बूंद में उसका यूं तड़पना,,
कैसे बरदास्त किया होगा पल पल का मरना,,
चंद लम्हों में सब तबाह,,
एक और चिड़िया का दर्दनाक समा।।।।
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