एक इबादत खुदा की मैं करलुं
जो तु दूजा रब बन जाये
तो मज़हब दूजा मैं चुन लुं
एक इबादत खुदा की....
इश्क़ को इश्क़ नहीं अपनी जात समझू
तुझको साथी नहीं
खुद को तेरा अस्क समझुँ
एक इबादत खुदा की....
तेरी ज़ुल्फो को ओढ़कर तुझसे ही
दिल की गुफ्तगू में करूं
हाथ तेरा थामुं जैसे
थामा तेरी यादों ने मुझको हैं
तेरे ख़्वाबो में ना या आऊं
जागकर रात दिन उन्हें सच बनाऊ
आँखे जब खोले तू हर रोज़ तेरे कदमो में
इक नया ही जंहा बिछाऊं
अपना अस्क नहीं वज़ूद मिटा
तुझमे ही कंही घुल जाऊ
एक इबादत खुदा की मैं करलुं
तुझको ही अपना सब कुछ
रब समझ लुं......
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