जब रात पे चाँदी छायी थी
बिन चप्पल और दुपट्टे के तू
छत पर मिलने आयी थी
दोनों के दिलो में तूफाँ था
साँसों में गर्मी छायी थी
मेरे आगे बढ़ने पर तू कुछ
शरमाई सकुचायी थी
फिर दौड़ के मेरी ओर मुझे
ज़ोरों गले लगाया था
दोनों की पलकें भीगी थी
इक़रार लबों पर आया था
फिर चेहरा तेरा हाथ में ले
भीगी आँखों को चूमा था
अश्क़ो में इश्क की खुशबू थी
दिल मस्त फ़कीरा झूमा था
आ जान मेरी इक बार दुबारा, इश्क़ में दोनों धुल जायें
इक दूजे से फिर जुदा न हों, अश्क़ो में नमक से घुल जायें
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