QUOTES ON #AAZADI

#aazadi quotes

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27 AUG 2020 AT 7:39

खुली किताब सी मैं..
पढ़ने दिया था तुमको..
जाने क्या सोच कर..
लिखना शुरु कर दिए.
खुली किताब सी मैं..
जज़्बात मेरे अपने..
जाने क्या सोच कर..
अपने अल्फ़ाज़ पिरोने लगे..
खुली किताब सी मैं..
अपने रंग के कवर में लिपटी..
जाने क्या सोच कर..
कवर बदलने शुरू कर दिए..
खुली किताब सी मैं..
आज़ादी में डोलने वाली..
जाने क्या सोच कर..
आलमारी में सज़ा दिए..
हाँ थी अधूरी किताब..
नहीं करनी है ऐसे पूरी..
जैसी हूँ वैसी पढ़ो सरकार..

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15 AUG 2021 AT 8:19

कहने को तो हमारी आजादी को 75 साल हो चुके हैं....
पर हम मानसिक तौर पर आज भी आजाद नहीं हो पाये हैं!!

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25 JAN 2019 AT 12:03

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15 AUG 2020 AT 8:05

कविता
"आज़ादी-ए-भगत सिंह का सफ़र"

"जय हिंद जय भारत"
"भारत माता की जय।"
"इंकलाब ज़िंदाबाद"

Please read caption for Bhagat Singh and Other Freedom fighters
👇👇👇👇👇👇👇🙏🙏🙏🙏🙏

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26 JAN 2021 AT 10:05

इतिहास में उन्ही के नाम आते हैं,
जिनके लहू देश के काम आते हैं।।

वैसे तो रोज हजारों लोग मिट्टी में दफन होते हैं।
नसीब वाले होते हैं वो जिनके बदन पर तिरंगे के कफन होते हैं।।

चलो आज वीर शहीदों को याद करते हैं और।
बॉर्डर पर देश कि रक्षा के लिए तैनात फौजियों के लिए फरियाद करते हैं।।

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5 APR 2022 AT 20:52

मैं कश्मीर हूं...

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14 FEB 2019 AT 21:30

वतन के लिए लहू बहा गया है कोई
जो ठंडी पड़ी थी मुर्दा से लोगों में
उस देश भक्ति को जगा गया है कोई!!

खुद होकर खामोश सदा के लिए
शोर बदले और आजादी का
फ़िज़ा में फैला गया है कोई!!

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किसी हिन्दू,मुस्लिम सिख या ईसाई की नहीं
ये शहीदों की जमीं है_
जिसने झेली है गोलियां
आजादी के लिए खेली है खून की होलिया
कैसे भूलू उनके बलिदान को
सैकड़ों ने दी है अपनी कुर्बानियां
तब जाकर हमें मिली है आजादिया
हम सब अपनी आजादी का जश्न मिलकर मनाएंगे
दुनिया के कोने कोने में झंडे फहराएंगे
हम आजाद हैं इस बात पर गर्व है मुझे
हम सब एक हैं और एक ही रहेगें
किसी हिंदू,मुस्लिम, सिख ईसाई की नहीं
ये शहीदों की ज़मी है_

Happy 74th independence day
🇮🇳Proud be indian🇮🇳

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14 AUG 2020 AT 9:05

कहानी-ए-आज़ादी

भगत के घर में जब बात हुई थी शादी की
तब उन्हें चिंता थी देश की आजादी की ।

माँ कह रही थी घर में शहनाई बजेगी।

भगत कह रहा था एक बार देश आजाद हो जाए
तो पूरे देश में शहनाई बजेगी।

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14 AUG 2018 AT 17:44

पहले 15 अगस्त पर खूब पतंगबाजी होती थी
न धूप की परवाह न बारिश की खबर होती थी
जब हम छोटे थे तब शायद यही
हमारे लिए आजादी होती थी
आज़ादी इस ज़मीन से कुछ ऊपर उठ जाने की
एक कागज की पतंग के सहारे आसमान छू जाने की एक छत से दूसरी दूसरी से तीसरी छत पे बिना रोक टोक जाते थे
कभी कभी इन पतंगों के साथ हम भी उड़ जाते थे
मांझे की पतली डोरी को सीढ़ी बना कर
पतंगो को अपनी जगह उस मांझे की सीढ़ी पर चढ़ा दिया करते थे
हम उड़ नहीं सकते थे पर अपनी ख्वाइशों को आसमान तक पहुँचा दिया करते थे
अब नहीं शामें हुड़दंग मचाती हैं पतंगे तो आज भी उड़ती हैं
पर ख्वाहिशें आज़ादी की तलाश में ज़मीनों पर ही रह जाती हैं!

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