"आपसी मन-मुटाव (16)
पड़ जाए जब रिश्तों में, ग़लमफ़हमी की दरार,
हायल से होने लगते, फिर आपसी मन-मुटाव,
रंज़िशें जब दिल में हो, आता रिश्तों में बिखराव,
पहले नज़र फेरते हैं, फिर होती ज़बानी टकराव,
ख़ुदग़र्जी के अंधेरे करने लगे, गर दिलों में घेराव,
मिटा दो बेग़र्ज मोहब्बते-शमा का करके चुनाव,
सिर्फ अपनी बात न रखना दूसरों की सुनना भी,
क्योंकि कभी-कभी छोटी बातें, भी देते बड़े घाव,
हयात-ए-दरिया में आते हैं, रोज़ ही नये तूफ़ान,
बचोगे तभी मोहब्बतों की चप्पू से चलेगी ये नाव!
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