मैंने जिसे चाहा था
वो बिखरने से बचा ले मुझको,
कर गया इन तुन्द
हवाओं के हवाले वो मुझको॥
मैं यहीं वीराने का
इक अकेला हिस्सा हूँ साहब॥
जो ज़रा शौक से
ढूँढे वहीं वो पा ले मुझको॥
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ज़िंदगी ख़्वाब है जनाब..और ख़्वाब भी ऐसा कि,
सोचते रहिए इस ख़्वाब की ताबीर क्या है।।
और जब..
मेरा ख्वाब ही ख्वाब कि ताबीर हुआ तो जाना....
जिन्दगी क्यों किसी आँखों के असर में आई।।
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तुझसे तो कोई गिला नहीं है
क्योंकि..क़िस्मत में मेरी सिला नहीं है।।
जो ज़ीस्त को मोतबर बना दे,
ऎसा.. कोई सिलसिला नहीं है।।
ख़ुश्बू का हिसाब हो चुका है,
पर.. फूल अभी खिला नहीं है।।
रास्ते मेरे मेरी मर्ज़ी के तबे है,
मगर..तेरे लिए कोई मिन्हा नहीं है।।
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जब से देखें हैं मैंने जहां में पढ़े लिखे जाहिल,
अब इंसान और हालात पढ़ता हूं, किताब नहीं पढ़ता॥
वो आया ठहरा चला गया सब उसकी मर्जी हैं,
तस्कीन- ए-अना में किसी को बदनाम नहीं करता॥
उसे उड़ता देखना हमेशा दिल की चाह रहतीं है,
अपनी निगाहों में भी उसे सरे-आम-निहारा नहीं करता॥
मोहब्बत,इज़ाज़ते,इनायते,खौफ़..वगैरह-वगैरह,
ये कुछ लफ्ज़ हैं, जिनसे मैं रिश्ता बनाया नहीं करता॥-
प्रियतमा..
चाँदनी रातों को ख्वाबों में,
यूँ चक्कर लगाया ना करो।।
मधुर-सी धुन इन कानो मे,
यूँ फुस - फुसाया ना करो।।
आकर सुहाने सपनों में,
यूँ हमको रुलाया ना करो।।
हमारी आखों-ही-आखों में
यूँ अश्क बहाया ना करो।।
बिन वज़ह मस्तानी शामों में,
यूँ छत पर बुलाया ना करो।।
॥॥हमको यूँ सताया ना करो॥॥
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If you want to be strong...
If you want to be different...
If you want to be sharp minded...
If you want to be self-supporter...
Then!
Learn to enjoy being alone.
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हद्द-ए-सफ़र रास नहीं आती,
चलता रहता हूं, मंज़िलें पास नहीं आती॥
गुज़रता हूँ रोज़ नयी गली, नए शहर से,
ठहरता हूं चंद लम्हात, बसने की बात नहीं आती॥
शाम के सूनेपन में,रात की तन्हाई में,
ढूँढता हूं तुम्हें सदैव रात की परछाईं में॥
देख एक मैं हूं जो तन्हा चल नहीं पाता,
पर इक तू है जो कभी साथ भी नहीं आती॥
हद्द-ए-सफ़र रास नहीं आती,
चलता रहता हूं, मंज़िलें पास नहीं आती॥
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मैं...
जिसको देख नहीं सकता,
उसको सोच कर ही खुश हूँ।।
जिसको पा नहीं सकता,
उसको पाने की चाह से ही खुश हूँ।।
जिससे मिल नहीं सकता,
उसकी मीठी याद में ही खुश हूँ।।
वो आएगी ये बता नहीं सकता,
मै उसके इंतजार में ही खुश हूँ।।
पसंद आऊँ तो जवाब देना,
वरना..बिना ज़वाब के ही खुश हूँ।।
॥ खुश हूँ॥
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इश्क-ए-जीस्त के सिलसिले हूए,
मैं उसका हुआ वो किसी ग़ैर का हुआ॥
किसी को किसी से प्यार हुआ,
हमको भी एक अजनबी से एतबार हुआ॥
लोगों को उनकी खूबियों से हुआ,
हमको उनकी कमियों से भी प्यार हुआ॥
मैं बन बैठा उसका बहका हुआ,
मैं इश्क में उसके अकेली पतवार हुआ॥
अकेला दुनिया से अंजान हुआ,
जब मैं इश्क में उसके गुलजार हुआ॥
॥ हमको प्यार हुआ _ पूरी हुई दुआ ॥-