"मृत्युभोज मिटावो रे"
जठै आगणे पूत बिलखे,
बिलखे उणरी माय।
बठै जाय रे मानवी,
जिबड़लिया स्वाद कियां आय।
मोट्यार सूं गठजोड़ टूटग्यो,
विधवा बठै रोय।
थालिया भर भर चाव सूं खावो,
पीड़ा थाने नी होय।
मिनख जग सूं ग्यो'परो, पाछौ नी आसी,
धरम दिखावा री आड़, मानवी भोग गणा खासी।
भूखो बैठो, बेटों मोटोडो उणरी भूक मिटावो रे,
आंधा रियोडा फिरो बावळा, झूठो मान क्यूं बढ़ावो रे।
क्यूं पंचा लारे गेला रिया, क्यूं थे लुटाओ रे,
"पारासरियो" करे बिणती, अबे मृत्युभोज मिटावो रे।
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