न नींदें हैं न ख़्वाब हैं न आप दस्तियाब हैं
इन आँखों के नसीब में अज़ाब ही अज़ाब हैं
ख़ुलूस की तलाश में हैं ऐसे मोड़ पर जहाँ
मैं भी शिकस्त-याब हूँ, वो भी शिकस्त-याब हैं
अगरचे सहरा-ए-वफ़ा में तश्ना-लब हैं सब के सब
मगर करें तो क्या करें कि हर तरफ़ सराब हैं
अमानतें किसी की हैं हमारे पास अब जो ये
शिकस्ता दिल, चुभन, घुटन, उदासी, इज़्तिराब हैं
न हो सके ख़ुशी में ख़ुश न ग़म में ग़म-ज़दा हुए
हमारी ज़िंदगी के कुछ अलग थलग हिसाब हैं
कहानियाँ, मुसव्वरी, किताबें, फ़िल्म, शायरी
सुकून-ए-दिल की आस में खँगाले सब ये बाब हैं
कभी बड़े ही नाज़ से नज़र में रखते थे जिन्हें
हमीं तुम्हारी आँखों के वो कम-नसीब ख़्वाब हैं
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