"परंतु यात्री! इतिहास अलग अलग लोगों को महान और सामान्य की तरह क्यों अंकित करता है?" "क्योंकि वर्तमान ने अपनी सुविधानुसार इतिहास को साक्ष्य बना रखा है" "तो क्या इतिहास साक्ष्य नहीं है?" "नहीं" "तो इतिहास क्या है?" "साक्षी"
"किन्तु यात्री! जो यात्रा में ना रहा क्या इतिहास उसे समान मान देगा क्या?" "यात्रा में कौन नहीं है मित्र?" "म... मैं! मैं तो मात्र अपना जीवन जी रहा हूँ। " " अत:" "अर्थात्? " "जीवन समय ही तो है" "और समय क्या है?" "यात्रा!"
"सुनो यात्री! अगर मैं तुम्हारी इस यात्रा के चक्रव्यूह में ना फंसूं तो?" "तुम अपना पथ अलग रखने को स्वतंत्र हो मित्र,किंतु... " " किंतु क्या यात्री?" "किंतु भविष्य हम दोनों को एक ही रूप देगा" "क्या?" "इतिहास!"
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