आदत में शुमार था प्रेम को छिटकाना किंतु , शनैः शनैः गिरहें लगने लगी प्रेम पर कभी तथ्य कभी पूर्वग्रह स्त्रीत्व के लिए इतना आसान नहीं प्रेम प्रदर्शन सामाजिक दायरों में सीमित है स्त्रीत्व के लिए प्रेम की परिभाषा शायद प्रेम देवत्व गुण है
टप टप टपक रही है बूँदे ज्यों प्राईमरी कक्षा की टीचर बोलती हैं एक वाक्य को बार बार 💧 भीगा पेड़ किसी मुनि सा गिरा रहा है परिपक्व हो वासनाओं को 💧 पुदीने और नियाजबो निम्न क्षुप मिट्टी में दबे ज्यों आभूषण लॉकर में 💧 पंछियों के भीगे पर रूमानिया अंदाज़ लिए ज्यों यौवन इश्क़ के हुलारे ले 💧 गिरती बूंदों ने बिरहन के हृदय की धरा को भिगो केंचुआ रुपी विरह विचरण कर द्रवित किए 💧 प्रौढ़ मन अतीत की भरी नदियों में बहा रहे हैं सादी मुस्कान की किश्तियाँ 💧 विवशता के खूँट से बंधे पुरानी कर्मक सशक्त छतों से ऊबाऊपन की सीलन उभर आई है
स्त्रियां निभाती रहती हैं अनुबंध, प्रतिबंध और ढोती रहती हैं संकल्प , विकल्प वो नहीं कर पाती जिम्मेदारियों की ग्रंथियों का विसर्जन कदाचित् स्वतंत्रता बाधक है उनकी तंत्रिका तंत्र में