आज शब्द थोड़े रूहासे हैं और कागज में थोड़ी नमी सी आयी है
इतने सालों में शायद पहली बार आपके लिए कलम चलाई है
याद है आपका मेरी शरारतों पे कभी मुस्कुराना और कभी गुस्सा होना
चलना भी आपसे ही सीखा है और सीखा अपने पैरों पर खड़ा होना
मैं जो कुछ भी हूं जैसा भी हूं पहचान आपसे ही पायी है
मां अक़्सर कहा करती है मुझमें आपकी ही परछाई है
अपनी परेशानियों में भी मुस्कुराते, किसी से कुछ नहीं कहते हैं
कहीं हम ना हो जाएं परेशान, ये सोचकर हर गम चुप चाप सहते हैं
चाहे कितनी भी मुश्किल हो, दिल में एक विश्वास होता है
हर मुश्किल से लड़ने में हमेशा आपका साथ होता है...!!
I love you Papa
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