QUOTES ON #URDULOVE

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3 NOV 2018 AT 15:37

*मैं स्त्री हूँ*

(रचना अनुशीर्षक मे)

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12 JAN 2019 AT 14:25

ये तब्बसुम, तरन्नुम, मुस्कुराते आरिज़, ये अदा...
उसकी हुस्ने-रानाई पर महो-अंजुम भी है फ़िदा...
बेनूर है माहताब भी उसकी आबो-ताब के आगे....
ये हलावत, मलाहत, लताफ़त बना के हैरान है ख़ुदा....


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23 AUG 2019 AT 17:45

गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...
शहर के दलदल में जाकर, वापस आता कौन है...❣️

साय-ए-शजर की, तलाश करता है हर पल...
हर कोई मकां बनाता है, शजर लगाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

अमीरे शहर है, यह साहिब, गरीबों को लूट लेता है...
उस ख़ाना-ख़राब को, गले से लगाता कौन है...
गांव की उन गलियों में,अब जाता कौन है...❣️

अगयारों से जब से, राबता यूं हो चला है...
विसाले-यार की याद,अब दिलाता कौन है...
गांव की उन गलियों में,अब जाता कौन है...❣️

उनके सुख़न का क़रीना, गैरों में था मशहूर...
पर बूढ़ी अम्मी-अब्बू से, अदब से पेश आता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

इस "मैं" और "मय" ने ही, फांसले बढ़ा दिए इतने...
इस ख़ुदी को दबा, दूरियां मिटाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

उधार की सी जिंदगी लिए, घूमते हैं दर-बदर...
सरफ़रोशी की मसअल, दिल में जलाता कौन है...
गांव की उन गलियों में, अब जाता कौन है...❣️

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21 MAR 2019 AT 20:47

MashaAllah

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24 JUN 2018 AT 21:49

दूसरों की झूठन तक भी जिसे नसीब न हो...
उसका छू जाना भी नागवार हो गया...
मुफ़लिसी ही सबसे बड़ा जुर्म था उस क़तील का...
जिसे देखते ही ज़माना संगसार हो गया...।।।

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8 AUG 2019 AT 20:49

अहदे -जवानी में हुस्न पर....
इठलाया करते थे वो यूं....
ख़ुदी में झूम कर बारहा....
भरमाया करते थे वो यूं....
ज़ईफ़ी ने आज हुस्न की....
रंगत यों बदल के रख दी....
जवानी में अपने बांकपन पर....
खूब इतराया करते थे वो यूं....

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10 JUL 2018 AT 16:54

जिसकी ख़न्दाह ज़बीनी की यूं भी तो...
चर्चा ना होती थी...
आज रौनक-ए-बज़्म है...
फिर भी गमज़दा है क्यों...??

जो हर बात पर यूं खिलखिलाकर...
मुस्कुराती थी...
आज महफिल की रौनक है...
फिर भी गमज़दा है क्यों...???

कभी उसकी काफ़िया बंधी भी...
समाँ को बांध देती थी...
आज पूरी ग़ज़ल सुना दी है...
फिर भी गमज़दा है क्यों...???

कभी नाआशना होकर भी...
बड़ी अपनी सी लगती थी...
आज आफ़ताबे ज़ीस्त है मेरी...
फिर भी गमज़दा है क्यों...???

कभी महशर ख़राम के तसव्वुर में...
खो कर भी जी लेती थी...
आज वो आगोश में है मेरे...
फिर भी गमज़दा है क्यों...???

कभी मेरे नक़्शे-पा पर न जाने...
कितने अशफ़ार कर डाले...
आज हम सफर है मेरी....
फिर भी गमज़दा है क्यों...???

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8 SEP 2018 AT 22:37

मेरी मुस्तक़िल महरूमियों पर भी मुझे उठा लेते हैं....
मेरे मोअल्लिम, मेरे बाबा, मुझे हर हाल में संभाल लेते हैं....!!

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25 SEP 2018 AT 22:12

अरबाबे-जफ़ा बनके....
उसे दिलरुबाई याद आई....
इस बार ना जाने क्यों उसको....
मेरी ख़ुदाई याद आई....

सैर-ओ-तफ़रीह का शौक भी....
यूं आम हो चला है....
आज जाने क्यों उसे....
मेरी हर भलाई याद आई....

अहदे-जवानी यूं ही....
शबे-वस्ल मे थी गुजरी....
पीरी में जाकर फिर क्यों....
मेरी जुदाई की याद आई....

पुर्सिश ना बचा कोई....
आज उसके आशियां में....
कदूरत रख कर दिल में....
मेरी आशनाई याद आई....

अर्जे-हयात की क्योंकर....
जुस्तजू रही हमेशा....
मेहरूमिए-किस्मत में आज....
फिर से परसाई याद आई....

आईनाखाने में यू रहना....
जिन्दाँ ही लगता मुझको....
मज्लिसी भीड़ में....
फिर क्यों शानाशाई याद आई....

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28 JUL 2018 AT 16:28

किसके किस्से

(अनुशीर्षक मे पढ़ें)

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