कभी फ़ुरसत हो तो आना ज़रूर
यहां, हमने, इंतज़ाम ए ख़ास रखा है
खुशियों को भी इजाज़त है, जब चाहें चली आएं
आंगन में, शजर, हमने ग़मों का पाल रखा है
और आने की उन्हे भी खा़स दावत है
जिन्होंने दामन, हमसे, अपना झाड़ रखा है
खुशकिस्मत हूँ , कि मेरा भी ख़ुद का घर है
नवाबी से रहता हूँ, 'सदमा' नाम रखा है
-