बारिश हुई सारे मंजर झड़ गए, अब बचे हुए का दर्द उस आम से पूछो;
सूरज निकला दिन चढ़ने लगा ,अब ढल जाने का दर्द उस शाम से पूछो
गले से उतर कर कितनों के कष्ट मिटाए उसने,होठों से लगे
उस जाम से पूछो;
कदम-कदम पर हजारों ठोकरें खाई जिसने, असफलता का दर्द उस नाकाम से पूछो
'पूछो पूछो आराम से पूछो!'
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