इनकार
ऐ काश की वो मेरे, जज़्बात समझ पाता,
बरसों से छिपी दिल में, वो बात समझ पाता,
मुद्दतों बाद खुला था, बंद ज़ुबाँ का ताला,
खज़ाना निकला कुछ, ढाई शब्दों का,
बिखर गया, खो गया..उसने नहीं संभाला,
अनमोल था ये सब, जिसकी उसे कद्र नहीं,
ज़रा आज़मा ले मोहब्बत मेरी,
इतना भी उसमें, अब सब्र नहीं,
हर कयामत से गुज़रने की, कसम खाकर आया था,
हर पर्दा मैं शर्म-ओ-हया का, उठाकर आया था,
नाचीज़ समझ कर मारी,
ठोकर जिसे उसने,
वो दिल चंद टुकड़ों में टूटा,
कुछ दिल रह गया सीने में,
कुछ बिखर गए दिल के टुकड़े,
दुआ नहीं मांगता कभी खुदा से, पर आज मांग आया था,
उसके सज़दे में दो घड़ी, मैं सिर झुका आया था,
फैला के हाथ रब से, बस तुझी को मांग आया था,
ख्वाबों का कत्ल भी तूने, क्या खूब किया,
फ़र्ज़ी अपनापन भी तूने, क्या खूब दिया,
ऐ काश की तू ,मेरा प्यार समझ पाता,
ऐ काश मुझे तू, मेरे यार समझ पाता।
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