जोधा से बीका निकला, बीका से निकला "बीकानेर" हर सख्श जहाँ पर रहता हैं, अपने आप में "सवा शेर" बीका के "शेरो" ने एक दहाड़ से जब जब भी ललकारा हैं ! हिंदुस्तानी इस धरती पर कोना कोना लड़खड़ाया हैं !!
जहाँ हर बात को गैर से भी समझा जाता हैं अपनों के संग परायों को भी प्यार बांटा जाता हैं कुछ ऐसा हैं शहर मेरा "बीकानेर" जहाँ दिनभर के ग़म को रात "पाटो" पर छोड़ा जाता हैं
मुझे मेरा राष्ट्र, मेरी भाषा, मेरा धर्म, मेरी परंपराएं, सदैव मुझे यही सिखाते हैं कि मैं राष्ट्र, भाषा, धर्म, परम्परा, परिवार का सदैव साथ दूंगा ! सदैव मैं इनके हित में बोलूंगा !
जय हिंद ! जय हिंदी ! जय हिन्दुस्तान !
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