अक्सर सोचता हूँ,
काश किताबें भी बोल पाती
तो कभी इन्तज़ार ना करना पड़ता,
काश ये किताबें भी सुन पाती
तो कभी एहसासों को बिखरना ना पड़ता,
काश ये किताबें भी चल पाती
तो कहीं भी तन्हा शामें ना होती,
काश ये किताबें भी इंसानों सी होती
तो इंसानों की कभी ज़रूरत नहीं होती!
फिर सोचता हूँ,
ये किताबें इंसान ना ही हो तो बेहतर है
बोल, सुन, चल नहीं पाती
मगर कम से कम इंसानों की तरह ये दिल तो नहीं दुखाती!
#PoolofPoems
-