स्वाभिमानी थी वो क्षत्राणी ।।
अद्भुत जोहर करने वाली पद्मिनी रानी ।।
शीश दिया उपहार में वह थी चुंडावत क्षत्राणी ।।
कलेजे का टुकड़ा देने वाली पन्नाधाय थी बलिदानी ।
अस्सी घाव लगे तन पर फिर भी तलवारे गूंजी मैदानों में, वो राणा सांगा री बात निराली थी।।
कूद गया जो घायल हो कर भी घाटी,
चेतक के स्वामीभक्ति की यह निशानी ।।
हर दुर्ग में रची यहाँ एक महान कहानी।।
शीश झुकाऊं करूं नमन यह धरती है बलिदानी ।
-