बंटवारा
राहीम और राम दोनों एक थे,
जिसका ख़ून बहा और जिसका खोला, दोनों एक ही थे
एक जैसे थे।
जिसका घर टूटा, जिसने तोड़ा, दोनों एक थे;
हाड़ मांस एक थे, ख़ून पसीने एक थे
भूख एक थी, रोटी एक थी,
पीर एक था, पोथी एक थी,
जश्न एक थे, मय्यतें एक थीं,
शर्म और अदब़ एक थीं, लफ़्ज़ों लिबास एक थे;
हां इबादत अलहदा थी लेकिन रब एक ही को याद किया,
एक ही थे वे, दो नहीं, उनको लड़वाया जिसने वह एक था।
वे एक थे प्रेम में, नफ़रत ने बंटवारा करवाया,
उनको लड़ाने वाले ने जी भर के लुफ्त उठाया...
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