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हमारे ऐब वो गिनवा रहे हैं,
बड़ा अहसान वो फरमा रहे हैं।
लिखे जो ख़त थे उनको आशिक़ी में,
वो टुकड़ो में हमें लौटा रहे हैं।
नहीं धड़का कभी भी दिल ये जिनका,
मुहब्बत क्या है वो समझा रहे हैं।
नदामत से परे है सोच जिनकी,
वही कसमें भी झूठी खा रहे हैं।
मेरे आँसू भी पछताते हैं "मीना",
निगाहों से बहे ही जा रहे हैं।
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