मां महज एक लफ्ज़ नहीं.. पूरी दुनिया समाई है उसमें.. इंसान के रुप में जैसे खुदा को पाया है हमने.. उसके डांट फटकार पे भी प्यार आता है.. उसकी मार में भी अपनापन महसूस होता है.. चाहे पूरी दुनिया हमें पराई कर दे.. मां ने हमेशा हमें अपने सीने से लगाया है.. पता नहीं हमारे दिल का हाल कैसे जान लेती है वो.. लगता है उसे जादू भी आता है.. हमारी हर छोटी से छोटी ख्वाहिश पूरी करती है.. मां बिन बोले ही सब समझ जाती है.. खुदा से हमेशा अपने बच्चों की सलामती की दुआ मांगती है.. बच्चे को चोट लगे तो आंसू वो बहाती है.. अपने बच्चों के लिए पूरी ज़िंदगी कुर्बान कर देती है.. और बदले में सिर्फ प्यार चाहती है.. कितनी भी कोशिश कर ले उसका कर्ज हम चुका नहीं सकते.. बस कभी उसकी आंसुओं की वजह ना बने ये कोशिश कर सकते है ।।
Being a member of a community, that faces the hardships of growling stomach, one tends to become strong, having strength stitched with strings of softness.
मैं ममता हूं... मेरे रूप अनेक हैं मेरा धेय एक है। मैं तेरे घर में भी हूं मैं इस कलयुग में, बेघर भी हूं। इंसानियत नष्ट हो रही मैं तप सी रही। मैं हूं तुम सबमें झांककर तू देख बस खुद में। मुझे ईश्वर की देन समझ या तेरे सद्कर्मों का फ़ल समझ। मैं हूं तो तुम हो तुम हो तो मैं हूं। मैं ममता हूं...