नजरों के तीर काजल कब तक सहे,
हीर की पीर पागल कब तक सहे।
हर रिश्ते की एक उम्र होती है,
पानी का बोझ बादल कब तक सहे।
टूटकर बिखर जायगी एक दिन,
ये वहशी निगाह पायल कब तक सहे।
चुल्लू भर पानी भी काफी होता है,
पाप के गोते गंगाजल कब तक सहे।
मासूम चराग को ओट भी है नापसंद,
कातिल हवा का दखल कब तक सहे।
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