मैं एक जंगल हूँ
शहरों में बसता हूँ
भीतर महकता चहकता हूँ
बाहर वीरान अनजान सा हूँ
महक जुदा है मेरी फिर भी
किस्मत का मारा कितना हूँ
उस वनफूल सा बिखरा हूँ
शहर में क़द्र जिसे मिलती ही नहीं
काँटों पर सोता हूँ
झरनों सा बहता हूँ
मत पूछ अनचाही इस नगरी में
गुज़र किस भांति मैं करता हूँ
मैं एक जंगल हूँ
शहरों में बसता हूँ
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