तुम बन सको राम तो मैं अहिल्या बनूँ
दशरथ बनो तुम तो मैं भी कौशल्या बनूँ
चीर हरण होती पांचाली की चीत्कार बनूँ
हाँ हाँ मैं भरी सभा की मौन भर्त्सना बनूँ
वृंदा का सत संकल्प हो मैं तुलसी बनूँ
रूप विलाक्षणा गार्गी का चपला ज्ञान बनूँ
सीता सी सतित्वा दुर्गा का प्रहार बनूँ
जब होउं तेजशीला रणचंडी विकराल बनूँ
राम राज्य सतयुग का जयजयकार बनूँ
त्रेता युग का मैं फिर त्वरित हाहाकार बनूँ
द्वापर का कृष्णकलरव औ अवतार बनूँ
कलयुग का चलो मैं नूतन अविष्कार बनूँ
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