अल्फ़ाज़ नहीं लिखते उसमे दर्द पिरोते हैं कलम की आंसुओ से हम, पन्ने भिगोते हैं ज़माने के आंसुओं से कोई लेना देना नहीं हमको वो शायर ही होते हैं, जो श्याही से रोते हैं
ज़िन्दगी की अपनी, हमे किताब दे देना रातों में अपने, हमें तुम ख़्वाब दे देना सारे गिले, सारे शिकवे भुलाकर मेरी मैय्यत पर जब आना, मुस्कुराकर तुम, ज़रा आदाब दे देना
मोहब्बत में हुई बेवफाई तो,दुनिया की नज़रों में हम कायर समझे गए और लिखे जो दो चार पंक्तियां, उस वेवफा की याद में, तो दीवानों की नज़रों मे, हम शायर समझे गए
उम्र भर तेरे, थोडी के उस तिल का दीदार करना चाहूं उसी तिल को चूम कर, तुझे मैं प्यार करना चाहूं मुझे तेरे जिस्म का तलबगार ना समझना मै तो बस, तेरी नज़रों से निगाहें चार करना चाहूं
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