कुछ ख्वाइशें दबाए इस दिल में,
जब रोज सुबह मैं उठता हूँ
ख़्वाबों के मन्ज़र को समेटकर
दिल की सतह मैं लिखता हूँ
मिले थे हम तुम जहाँ पहली दफ़ा
फिर से वही जगह मैं लिखता हूँ
नाराज है गर तू मुझसे तो तुझे मनाऊँ कैसे
खत में मोहब्बत की अब सुलह मैं लिखता हूँ
वापस आकर मेरे दिल के अंधेरे को उजाला करदे
आज मिलने की फिर कोई वजह मैं लिखता हूँ
कुछ नहीं तो,तेरी मोहब्बत लिखना सिखा गई
यादों को इकट्ठा करके काव्य संग्रह मैं लिखता हूँ
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