तुमने हमे ठुकरा के अच्छा किया,
हम कम से कम अपने पैरो पे तो खड़े हुए।
ज़िन्दगी में कुछ किया ना किया,
पर इसके जाल में फस गए अब।
अब ये जाल ही मेरा घर है,
इसी को सजाना है।
जो हम पे शक किये,
अब उन्हें ही सिखाना है।
भीगी माचिस को भी जलाना है,
पत्थर वले रास्तो मे नंगे पैर भी चलना है।
शक करने वलो के होंठो पे वो शांति का ताला लगाना है,
खुद की नज़रो मे गिरे हम फिर से आसमान की सैर करना है।
हवा मे उड़ने की आदत नही,
ज़मीन का हू ज़मीन में ही रहना है।
पर उन ज़मीन से गिराने वालो को थोड़ा सिखाना है,
हम में है कुछ बात उनको समझाना है।
बस यही बता के वापिस ज़मीन पे आना है,
अपनी इस प्यारी ज़मीन को छोर के कहा हमने जाना है।
~~Ankit & Sachin~~
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