QUOTES ON #HUJRA

#hujra quotes

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16 FEB 2021 AT 19:07

खुद मोहताज रहकर हमें सरताज बना कर रखते हैं
हमारी हर खुशी को भी अपना राज बनाकर रखते हैं
आज मैं भी तलाशी लूंगा मां बाप के उस हुजरे की
जिस जगह हमारे ग़म को भी हमसे छुपाकर रखते हैं

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16 OCT 2020 AT 22:42

हुजरा-ए-दिल भी हमारा गजब ढाता है
रखो जितना भी इसमें, सब समा जाता है

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18 JUL 2018 AT 21:45

आज बरसात होगी, बदलियाँ बताती हैं,
ख़ूब बरसात होगी, बिजलियाँ बताती हैं।
मेरा हुजरा है कैद चार-दिवारी में पर,
रोशनी आएगी, ये खिड़कियाँ बताती हैं।
न करो बात मुझसे, फिर भी जानता हूँ मैं,
याद करती हो मुझे, हिचकियाँ बताती हैं।
बड़े ग़मगीन रहेंगे ये मकाँ उनके बिन,
घर को बरकत का पता बेटियाँ बताती हैं।
ये जो सहरा है फैल रखा अपने चारों तरफ़,
था ये ग़ुलशन कभी, ये तितलियाँ बताती हैं।
सच छुपाता है अपने बच्चों से रोज़ मगर,
वो है मजदूर, उसकी उंगलियाँ बताती हैं।
ऊपरी तौर से तो सख़्त नारियल सा है,
वो है अंदर से नर्म, तल्ख़ियाँ बताती हैं।
न है बचपन कहीं, न कोई खेल होते हैं,
हो के मायूस, सारी बस्तियाँ बताती हैं।
बेचने वाले बेच देते हैं ज़मीर अपना,
यहाँ बिकता है सच भी, सुर्ख़ियाँ बताती हैं।
मैं ख़ुदा बनने की कोशिश में कामयाब नहीं,
मैं हूँ इंसान, मेरी गलतियाँ बताती हैं।

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18 APR 2020 AT 17:42

आरज़ू तो था इमारत बनाने का ,
 पर उसने तो हुजरे में ही खुशियां ढूंढ लिया !

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17 JUL 2018 AT 18:40

रश्क़-ए-ग़ुल या रश्क़-ए-ग़ुलशन, बोल तुझको क्या लिखूं,
है अजब सी यार उलझन, बोल तुझको क्या लिखूं।
है भिगोया मुझको तूने अपने आब-ए-हुस्न से,
बहता दरिया या कि सावन, बोल तुझको क्या लिखूं।
दिल चुरा कर रख लिया है तूने अपने पास ही,
चोर, ठग या कोई रहज़न, बोल तुझको क्या लिखूं।
लापता मेरा पता है, तुझमें हूँ रहने लगा,
अपना हुजरा या नशेमन, बोल तुझको क्या लिखूं।
उस ख़ुदा की सबसे दिलकश जैसे हो तख़्लीक़ तू,
सोना, चाँदी या कि कुंदन, बोल तुझको क्या लिखूं।

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11 APR 2020 AT 12:50

बस जिसे मेरा, हुजरा पसंद आया,,

कुछ लोग तो, हुजरा सुनते ही लौट गए थे...

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14 DEC 2021 AT 16:12

तेरे और मेरे हुजरे में फर्क ज्यादा नही
बस तू मेरे में नही मैं तेरे में नही

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8 APR 2020 AT 11:12

हम आशिक़ है साहब,
हमे कल का ताजमहल नहीं चाहिए
प्यार का हुजरा कहा है बस इतना बता जाईए ।

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6 AUG 2018 AT 11:33

अपने ही कूचे को हम तुम तिनका तिनका कर बैठे,
हुआ ग़ज़ल का बँटवारा तो मिसरा मिसरा कर बैठे।
वो काफ़िर जो उस ताकत पर करते थे विश्वास नहीं,
ज़रा दर्द क्या झेला, वो भी अल्ला अल्ला कर बैठे।
हम ग़र रहते चैनो-अमन से, बाग सभी क़ाइम रहते,
हम दंगों में सारा ग़ुलशन सहरा सहरा कर बैठे।
कौन सुनाएगा ग़ज़लें और कौन सुनेगा नज़्मों को,
मोबाइल के दौर में ख़ुद को गूंगा बहरा कर बैठे।
दुनियादारी का कोई भी इल्म नहीं है यार तुम्हें,
आईनों के शहर में रहकर चेहरा चेहरा कर बैठे।
बनकर मरहम आए थे जीवन में मेरे तुम लेकिन,
घाव कुरेदा ऐसे तुमने, गहरा गहरा कर बैठे.
जाने कितनी सदियों के प्यासे पनघट पर आए थे,
सात समंदर, सारे दरिया, क़तरा क़तरा कर बैठे।
वक्त ने जब बदली करवट, तो सारे मंज़र बदल गए,
बंगलों-कोठी के मालिक भी हुजरा हुजरा कर बैठे।

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6 SEP 2020 AT 19:36

वो जो हुजरा-ए-दिल में जलवानुमा है...
आजकल हमें कुछ खफा नज़र आये है!
#bina

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