QUOTES ON #HINDIWRITINGS

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11 JUL 2020 AT 19:25

एक स्त्री के जीवन काल में
उसके पिता और भाई के बाद आया
पहला पुरुष,
सदैव ही उस ममतामयी माँ की गोद सा होता है
जहां किसी भी उम्र पर एक स्त्री,
अपनी समस्त उम्रदराज ख्वाहिशें भूल कर
एक नवजन्मी दुहिता बन जाती है ll

मनीषा मिश्रा ❤️🦋

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प्रिय यादे...😐😐

कितनी बेरहम हो तुम।
कहो.....
इतनी बेदर्दी से तुम मेरे पास आ के क्युं यहीं डेरा बसाती हो
कभी अंजानो के शहर भी हो आया करो न
कभी उनपे भी अपना रंग चढाया करो न
क्यों मुझे हीं इतना तडपाती हो


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12 AUG 2020 AT 22:32

तुम्हारा यूं मुझको समझना...
मेरे चेहरे को पढकर ही मुझे जान लेना,
मुझको यूं सर से पाँव तक निहारना...

तुम्हारी हर मुस्कान के पीछे मेरा होना,
मेरी हर तकलीफ पर तुम्हारा भी रोना,
तुम्हारी आँखो मे बस सिर्फ और सिर्फ मेरा होना...

हर रात तुम्हारा मुझसे दुर रहकर भी,
मेरे करीब सोना...

"लगता है किसी रोज तुम्हे सिर्फ और सिर्फ मेरी होना है... मखमली सफ़ेद सी चादर में लिपटकर पहले आग और फिर पानी होना है...

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16 MAY 2017 AT 10:02

खालीपन से भर आया हो मन अगर
अपने हर एक अक्षर को समेट लेना
अक्षरों की मोतियों को फिर कागजों पर बिखेर देना
ध्यान रहे कि उन मोतियों की अतिश्योक्ति न होने पाए
सरल शब्दों की सजावट से ही मन कुसुमित हो जाए

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30 JUN 2021 AT 10:05

सहज़ता से कुछ "पाने" के लिए
सहजता से "देना" भी होता है
जो बहुधा ही "जटिल" है ;
फ़िर चाहे वो
"प्रेम" हो,
घृणा हो,
जीवन हो ,
या फ़िर "बलिदान" ;
क्या ही फ़र्क है!!!
-Anjali Rai

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18 JUL 2020 AT 21:04

हर रोज ख़ुद से एक द्वंद्व लड़ती हूँ












मनीषा मिश्रा ❤️🦋

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29 APR 2017 AT 14:55

सूखा पेड़ पतझड़ की मार से मरा हुआ लग रहा है, लेकिन खड़ा है फिर भी अपनी जगह।
याद है उसे की जब वह भी हरा भरा पत्तों से लदा होता था तब खूब तारीफें बटोरता था।
उसी के साथ एक चाय की ढाबली भी है जहाँ से लोग चाय लेकर उसकी छाया में बैठे बैठे कई विषयों पर चर्चाएँ किया करते थे, कभी कभी कोई प्रेमी युगल भी उसकी छाव में बैठे बैठे अपने प्रेम को उसके तने पर अंकित किया करते थे, सूखा पेड़ तब कितने गर्व से भर जाता था।
पर अब पतझड़ में उसकी किसी से भेंट नही होती, न कोई प्रेमी युगल आता है, न ही कोई राजनितिक, आर्थिक चर्चाएँ होतीं हैं।
लगभग सभी पत्तियाँ उसकी शाखाओं से गिर कर विदा ले चुकी हैं, लेकिन सूखा पेड़ वही खड़ा है ढीठ बन कर,
इसी विश्वास में की वसंत फिर से आएगा !

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9 JAN 2020 AT 21:47

एक बात ज़ेहन में मेरी , खटकती है ,
पूछूँ तो क्या तुम बताओगे मुझें।
थोड़ा उदास मायूस सा रहता हूँ , आज कल ना जाने क्यू,
मैं कहाँ, कब, क्यू, क्या करता हूँ , मुझे खुद समझ नहीं आती,
इसकी वजह क्या है , क्या तुम समझाओगे मुझें।
भटक रहा हूँ मैं , खुद ही खुद के चुने रास्ते से ,
बेवजह सी बेवक़्त ही कुछ ना कुछ करता हूँ
उलझा हुआ सा हूँ खुद में ही कहीं,
क्या तुम सुलझाओगे मुझें।
एक बात ज़ेहन में मेरी , खटकती है ,
पूछूँ तो क्या तुम बताओगे मुझें।

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16 JUN 2019 AT 22:06

Ab tumhe kuchh bolne se pehle sochna padta hai ki kahun ya na
Kyun ki ab toh khudko khudke upar shak hone Laga hai
Badalgaye ho tum ya ye sirf meri najariya hai

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13 AUG 2017 AT 19:18

प्रेम हमेशा गुलाबों सा महकता ही नही
कभी कभी काँटों सा यार चुभता भी है

जो छलनी करते हो लफ़्ज़ों से मेरा दिल
पत्थर नही है दिल मेरा यार दुखता भी है

कमोबेश यही कहानी रही इस दिल की
वस्ल ए इश्क़ की तन्हाई में यार रोता भी है

बहुत पसन्द है उन्हें इश्क़ का सुर्ख़ लाल रंग
कागज़ पर मजबूरन वही यार टपकता भी है

पिघलती हूँ लावा बनकर जब भी रातों को
पहली किरन में मेरा ज़िस्म यार तपता भी है

हर बार टूटकर अब्र से बिखरती हूँ, दिल मेरा
दुआओं में माँगने को तुम्हे यार मचलता भी है

कुछ यूँ ही मिल जाये ख़बर ए यार की मुझे,वो
बंजारा नींदों को लिए गली में यार फिरता भी है

जब कभी लिखती हूँ मैं बिखरकर सुर्ख़ स्याही से
मेरे अंदर बेबस दवात सा कोई यार सिसकता भी है

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