QUOTES ON #HINDIPOEM

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14 NOV 2019 AT 20:38

तन से गंदे
मगर मन के सच्चे ..... होते है बच्चे
अकल के कच्चे
मगर शैतानी में अव्वल .... होते है बच्चे
करते है छलावा
मगर भगवान का रुप .... होते है बच्चे
झूठे ईनके आँसू
मगर खिल खिलाकर हसते .... ऐसे होते है बच्चे
शोर मचाते परेशान करते
मगर इन्से ही जिंदगी की पूंजी ....ऐसे होते है बच्चे ..!!

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10 OCT 2021 AT 14:39

तुम्हारा ‌लौट आना कैसा होगा ?
क्या वो जेठ की किसी शाम तपती धरती पर
बादलों द्वारा धरती को भेजा गया प्रेम पत्र जैसा होगा
या फिर किसी ठिठुरती ठंड की सुबह
शरीर पर सूर्य की किरणों के पड़ने जैसा
क्या वो सालों से क़ैद पंछी का
गगन में उड़ जाने जैसा होगा
या फिर हिंडोले में रोते हुए बच्चे को सुन
उसकी माॅं का रसोई छोड़ बच्चे की ओर भागने जैसा

क्या तुम्हारा लौट आना ऐसा होगा ?
शायद नहीं !
मेरे लिए
तुम्हारे ‌लौट आने का प्रतीक होगा
मेरी उदास कविताओं का
खिल-खिलाकर हॅंस देना !

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22 NOV 2018 AT 11:56

संत्रस्त हुए क्रन्दित मन में ,हर पीड़ा में ले ज्योति जगा,
तुम गृह त्याग कर बुद्ध हुए,मैं सब सह कर भी यशोधरा,

1) तुम उषा काल मे छोड़ गए,मैं निशा काटती सब सहकर,
दायित्व तुमपर बस स्वयं का क्या? मैं सर्वस्व लुटाऊँ सुत जनकर ,
जप तप का ज्ञान ना जानूं मैं, मोक्ष अपना तुमको ही माना,
योग के 'योग' को ना समझ सकी, सर्वस्व अपना तुमको ही जाना,
छलकती तुम में गर ज्ञान ज्योति,मुझमें रिक्तता का सोम भरा....
तुम गृह त्यागकर बुद्ध हुए,मैं सब सहकर भी यशोधरा......

2) कहलाये तुम योगी-जोगी,भार्या का 'योग' ना समझे तुम,
अर्धांगिनी के अर्थ को व्यर्थ किये, 'भाग' अपना न दे पाये तुम,
सिद्धि-तप जो भी कारण था,मैं नैनों से पथ को सींच देती,
यों दिया आघात क्यों प्राणप्रिये क्या नहीं तुम्हें अनुमति देती ?
मेरी पीड़ा की साक्ष्य यहाँ है कोई नहीं बस वसुंधरा....
तुम गृह त्यागकर बुद्ध हुए,मैं सब सहकर भी यशोधरा......

3) तुम युग पुरुष,सुविज्ञ हो तुम,संसार के सार को समझाया,
विज्ञ हो तुम,हाँ बुद्ध हो तुम,दिव्य ज्ञान अलख को जगाया,
परिणीता हूँ मैं 'सिद्धार्थ' की, बुद्ध 'भाग' को कैसे पहचानूं ??
राहुल की हूँ धात्री मैं, ममता से ज्यादा ना कुछ जानूँ,
मैं ही अतृप्त रह गयी बस,संतृप्त तुमसे यह विश्व ,धरा....
तुम गृह त्यागकर बुद्ध हुए,मैं सब सहकर भी यशोधरा ...© Aditi Tripathi 'आज़ाद' 🇮🇳

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22 NOV 2018 AT 18:18

सुना है शाम आई है शमा की याद लाई है!
हां मैं लौट आऊंगी ,कसम उसने उठाई है|

कहा बरसात लाएगी मेरे संग भीग जाएगी!
न तो स्वयं ही आई, न बरसात लाई है|

परिंदे लौट आये हैं बढ़ रहे शाम के साये!
द्वार भी खोल आये हम,काश इस राह से वो आये|

शाम वो याद है अब भी, वो दिल मे जब समाई थी!
मेघ ऐसे ही थे छाये, कुछ बारिश भी आई थी|

शाम ये फिर से आ करके, शाम की याद लाई है!
हसीं वो शाम थी ऐसी,कभी न भूल पाई है|

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15 NOV 2018 AT 14:38

कैसा ये फ़साना गढ़ गए
हर बात पे बहाना पढ़ गए

ख़ुद की गलती पर सौ पर्दे
दूजे पे राशन ले चढ़ गए

गर पूरा ना हो काम अपना
किस्मत पर दोष मढ़ गए

छोटे में माँ को पूछे सौ सवाल
अब वो पूछे तो बिगड़ गए

छेड़ी हर आती जाती कन्या
बहना को ताड़ा तो लड़ गए

कैसा ये फ़साना गढ़ गए....

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तेरी हसरतों से पाया है मैंने तुझको
अब तू माने या ना माने ये तुझ पर है।

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3 OCT 2020 AT 12:53

जिंदगी तु हर बात पर रुठ ना जाया कर,
मैं अगर तुझे मनाउ तो तू मान जाया कर।

जानता हूँ मैं देखता सपने औकात से बडे,
पर तु भी कभी तो हाँ में हाँ मीलाया कर।

सोचता हु मिले मंजिल मुझे भी एक दिन,
मेरे ख्वाबों का कुछ बोझ तु भी उठाया कर।

मैं हार नहीं मानूंगा कभी ए जिंदगी तुझसे,
तु तेरा साथ देकर कभी तो जीता या कर।

मैं रूठ जाऊं अगर तुझसे कभी ए जिंदगी,
तू भी कभी मेरी मां जैसे आकर मनाया कर।

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12 NOV 2018 AT 23:39

बैठ जाना चाहती हूँ किनारों पर
लहरों का खेल अच्छा लगता है,
बहुत शोर है अपनों के शहर में
खामोशियाँ सुनना अच्छा लगता है!

अक्सर देखती हूँ कितने अन्जान चेहरें
खुद से मिलना अच्छा लगता है,
रिश्तों के धागे उतार कर कुछ पल
अपने लिये जीना अच्छा लगता है!

(Read full poem in caption)


#PoolofPoems

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5 JUL 2021 AT 13:41

फितरत नहीं बदलती दगा देने वालों की,
ये नए ज़माने का शहर है हुज़ूर,
यहां सोहबत रास नहीं आती किसीको
वफ़ा करने वालों की।

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26 SEP 2018 AT 18:34

अब नहीं बचा कुछ भी...
(full in caption)

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