अंतर्द्वंद चल रहा हृदय में, नैनों में लालिमा छायी है,
क्रोध से व्याकुल हुये वो जैसे घोर आँधियाँ आयी हैं।।
किये समर्पित जिसे स्वयं को, रहा न कोई मोल उसी का,
ज़रा भी उन्हें हुआ न पीड़ा,पत्थर के जैसा मन है जिसका।।
कभी वो सोचे कभी वो विचरे, नही दिखे कोई पैग़ाम,
कैसे मिलेगा कोई भी रस्ता, हुआ क्रोध से सब बरबाद।।
हुआ था उनको भ्रम कि वो कोई छल नही एक प्रेम था,
आज हुआ जब हृदयाघात, सच भी इक नई सकल में था।
बुने स्वप्न जो मिलन की उनको, क्यूँ ऐसा पल दिखाया,
मरे वो पल-पल अपने भाग्य पर कहाँ से ऐसा क्षण आया।।
कहाँ मुड़े वो किधर को जाये, हर ओर उसकी छाया है,
निःशब्द वो अब हिल गए हैं, क्या ये प्रेम नही एक माया है।।
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