कुछ जज़्बात को अल्फाज़ दे,
कुछ गम को अब तू ख़ुशी दे,
बोल दे इश्क़ को आ रहा हूँ !
कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !
आज मौसम का मिज़ाज सर्द बहुत हैं,
ये दिल मे अरमानों की आग बहुत हैं,
देख फ़ितरत दुनिया की मुस्कुरा रहा हूँ !
कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !
चाहत अपनी रास न आई,
दिल मे अगल बेचैनी पाई,
उन्हें यादों में रख अब लिख रहा हूँ !
कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !
~कुछ ख्याब मैं बुन रहा हूँ !
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