मेरी सुबह की टहल में, एक अलग सा सुकून है । बादलों की आस्तीन से जब धूप झाँकती है खेलती है सतोलिया कुछ टूटे बिखरे टुकड़ो संग । मैं चल के पहुँचता हूँ दरख्तों के आसेब में जहाँ मेरी परछाई मुझ से ज़्यादा खुशनुमा है ।।
(क्रमश:)
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