गुमनाम पहलू
गुमनाम अंधेरों में,चीखती चिल्लाती सी,
असहाय आंसुओं का,सैलाब सा कोई।
आंखों में दर्द,सीने में आग सा कोई,
जिस्म परोसती,नोचता हर कोई।
हीन दृष्टि से देखें हर कोई,
जैसे समाज का अकलंक कोई।
दिन मे घृणा का जीवन जीती है,
रात को उसे सुलाये हर कोई।
अंधेरे में कल,अंधेरा कल भी है,
न मंजिल कोई,ना रास्ता कोई।
गुमनामी में ज़िन्दगी ढेर हो जाएगी,
न पूछेगा कोई,न रोयेगा कोई।
सिसक सिसक कर,हर रात मरती है,
किस्मत की ठोकर,या रब का खेल कोई।
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