(खबरदार पाठकों यह कोई कविता नहीं है)
अच्छा बहीनचोद हम कभी अच्छे कामों के लिए तो जाने-जाते हैं! नहीं, फिर भी ये समाज हमे कुकर्मों
से छुड़ाना चाहता है! किसी का कोई खास स्वार्थ भी
नहीं है! हमें लेकर....न भौसडी वाले कोई रिश्तेदारी करना चाहता है! अरे 25 का हो गया हूँ!
सुधर जाता हूँ! अपनी बिटिया ही ब्याह दो!
रिश्ते की तो बात ही मत करियो इनसे... इनकी नाक में
जाने कोई बदबू सी बैठ जाती है!
मेरी प्राइवेट जॉब का सुन कर...
फिर भी लॉड़ें लोग ,,,,हमारे घर वालों से तारीफ करते
नहीं थकते अरे मिश्रा जी आपका बेटा तो बम्बई
में छाप रहा है!
-Rahul S. Mishra
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