सफ़र की शुरुआत में ही मिला कोई,
जो था साधारण और सांत मन राही।
मिला था पहली दफ़ा तुमसे,
वो मिलन था बड़े का छोटे से।
उस पल बोल ना सका ये गलती नहीं थी मेरी,
तुम थी सीनियर और जो मुझे थी प्यारी।
शायद ये था कुछ अलग मैंने बोला भी नहीं,
लेकिन फिर भी ख़बर सारे शहर में फैल गई।
व्यक्त बदला है पसन्द नहीं,
तुम हो अनोखा हीरा जो हम नहीं।
अब तलासने चला हूँ कोहिनूर कोई,
पर मालूम है मुझे तुमसा ना और कोई।
बात अब रुचि की आती है जो है मुझे तुममे,
रुचि तुम्हारी न होने के भाव का भी सम्मान करता हूँ में।
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