मुखिया
जिंदगी के दरिया में,
अपने को डुबा,
रिश्तों को बचा लाया,
अपने हवाले खुद को कर,
अपना ही कत्ल
बड़ी राहत से करा आया।
परिवार के डोरों को
मजबूत करने के ख़ातिर
समाज के कीड़ो से
रेशम में खुद को
तबदील करा लाया।
मौसमों का दंश झेल
खूँटी पे टाँग सिद्धांत
छोटो को प्यार
बड़ो का सम्मान
खुद को भूला आया।
मुखिया,
सीने में बचपने को दबा
जवानी में कन्धे पे
अनुभवों का बोझ उठा लाया।
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