मौत के दिन,
ये क्या इत्तेफाक हो रहा है।
ये गांव और शहर,
क्यों वीरान लग रहा है?
......
अंधेरा दिल में था,
तो ये शहर क्यों?
'अंधकार में जल रहा है।'
मैं तो तिनका था न,
जो आज मिट रहा है।
फ़िर पर्वतों का ये अहंकार,
क्यों मर रहा है?
......
हां! मैं वापस नहीं आहुुंगा,
पर पर्वतों को अहंकार आ जाएगा।
पर जल के रोशन करूंगा,
जिन चेहरों को,
उनमें भी तो स्वाभिमान आ जाएगा।
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