न जाने क्यूँ हम उनकी बातों में आ गये,
वो बन कर बादल मन के अंबर में छा गये।
कभी न रोने की हमने कशम खायी थी,
वो बन कर अश्क मेरी आँखों में आ गये।।
न जाने क्यूँ...
अचानक हो गये ओझल वो नजर से,
काश इंसानियत का रिश्ता जताया होता।
वफ़ा की बहुत की थी उम्मीद हमने,
गर ख़फ़ा थे हमसे, ख़ता तो बताया होता।।
क्यूँ बन कर दर्द, वो मेरे दिल में छा गये।
न जाने क्यूँ...
लगता है इस दर्द से मर हम जायेंगे,
ज़ख़्म ऐसा है कि मरहम न काम आयेंगे।
बन कर रुलायेगा नासूर वो हमको,
मरना भी चाहें, तो हम मर भी न पायेंगे।।
मोहब्बत की हम, ये कैसी सज़ा पा गये।
न जानें क्यूँ....
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