*चिंता*😔
वो बचपन के दिन कितने प्यारे थे ना..
न कोई चिंता हमें सताती थी और न ही
किसी बात की हमें चिंता होती थी क्योंकि उस
समय हमारी कोई जिम्मेदारियां नहीं होती थी।
बस उठना- सोना , खाना- पीना , खेलना -कूदना,
घूमना- फिरना इन सब से हमारा
दिन बिना चिंता किए बगैर बीत जाता था।
लेकिन जैसे -जैसे हम बड़े होते गए
हमारी जिम्मेदारियां भी बनती गई और
इसी ज़िम्मेदारी ने हमें चिंता में
डालना शुरू कर दिया और हमनें अपनी ज़िंदगी
चिंता के साथ जीना शुरू कर दिया।
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