मैंने कहा था, लड़का बड़ा होके सहारा होगा ।
बेटा समझ बैठा, पैसे से ही गुज़ारा होगा ।
अब सोने की छड़ी तो है,
पर सहारा मिलता नहीं ।
मखमली बिस्तर तो है,
नींद आंखों में बसती नहीं ।
खाने को लज़ीज़ पकवान है,
भूख़ लगती नहीं
पीने को मीठा पानी है,
प्यास बुझती नहीं ।
टेहलने को बाग है,
मगर दिल बेहलता नहीं ।
रहने को बंगला है,
पर वीराना दिल से जाता नहीं ।
जी खुशियों का मंज़र चाहता है,
पर परिवार का इंतजाम नहीं ।
मैंने कहा था, लड़का बड़ा होके सहारा होगा ।
बेटा समझ बैठा, पैसे से ही गुज़ारा होगा ।
- Anuradha Sharma
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