तराश एक नफ़्स को आया हूँ,
अज़ान से लफ्ज़ चुरा लाया हूँ।
खामी इस बज़्म में न हो कोई
क़फ़स-ए-रूह सुला आया हूँ।
छेड़ो कोई क़ल्ब-ए- मौसिक़ी,
मैं बख़्त-ए-बेकस हो आया हूँ।
तेरी इस अबद जिरह के लिए,
ज़ौक़-ए-निहां साथ लाया हूँ।
नासबूर हूँ तेरे फैसले ले लिए,
फुगां-ए-फ़ुवाद दबा आया हूँ।
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