जितने आंसू बहने के थे, बहा दिए सारे मैंने
शेरों को गीदड़ के आगे, लगता हैं हारे मैंने
राखी की थाली भी कहती, देखेगी अब राह नहीं
करवा-चौथ मनाने वाली, मन में बसती चाह नहीं
बासंती मधुमास कहेगा, दिखता अब वो प्यार नहीं
यहाँ मनेगा रंग-बिरंगा होली का त्यौहार नहीं
दीपों की लड़ियाँ भी अब तो, कभी नहीं जल पायेगी
कोयल मीठे स्वर में अब तो, गीत नहीं फिर गायेगी
सावन के इन झूलों को भी, कौन यहाँ पर झूलेगा
सीमा पर बलिदान दिया है, कौन यहाँ पर भूलेगा
तेरी खून सनी वर्दी को, कोई नहीं अब धोएगा
मैंने मन को समझाया है, कभी नहीं अब रोएगा
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