एक रिश्ता इज्ज़त और एंहतराम
की ,ना दिखावे की तवज्जो
एक रिश्ता एहसास का
ना एहसान की ज़रूरत
एक रिश्ता ऐतबार का
ना सनद की मोहताज
हां लिखना तो तुझसे ही सीखा
हा सच है इन अल्फजो को आजमाया
भी तुझपे है
कभी तंकिज़ी कसे, कभी शिकायते लिखी
कभी जज़्बात तुझसे ना कह के यहां बिखेर दी
हां कहते नहीं वक्ती दोस्त सब बनाते तूने बे वक़्त
पे भी साथ दिया ,
खैरो खबर लेनी छोड़ दी थी पर नजर हर वक़्त रखा
कभी रूठना कभी मनाना हुआ ,हा दोनों वास्ता निभाते गए
हा दोस्ती वफा तूने सिखाया , कभी खामोशी से मेरी बाते सुनी
कभी हक से अपना फैसला सुनाया मुझे
तू ज़बान पे सिर्फ़ ज़िक्र ना रहा ,दुआ में भी शरीक होते रहे
तेरे हर मुकाम पे कोई रहे ना रहे ,तुझपे खुदा की रहमत बनी रहे..
✍️izafa ریشمہ
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