यूं किसी से दुश्मनी नहीं है, फिर भी दुश्मन कई है
आदत सच को सच, झूठ को झूठ कहने की रही है।
मैं रूख नहीं बदलता हवा के झोंके के साथ,
धारा के साथ की आदत लाशों के बहने की रही है।
जान की बात भी आए तो हक़ से मुकरना नहीं,
मुझे ये बात बचपन से मेरे बुजुर्गों ने कही है।
हालांकि वक्त के साथ कुछ बदलाव जरूरी है,
रहेगा दूध ही भले कहने में छाछ, लस्सी या दही है।
आजमाइशें तो जरूरी हिस्सा है सफ़र का सफ़र,
इनमें साथ छोड़ देने वाला कतई इश्क़ नही है।
जो करता है घर के हर एक हिस्से को रोशन,
कहीं न कहीं अंधेरे से ज्यादा डरा हुआ वहीं है।
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