जो दूसरों के लिए बदल जाए वो इंसान ही क्या,
जिसकी मन से खातिरदारी न हो वो मेहमान ही क्या,
ख़ुद की नज़रों में गिर के जो पाओ वो सम्मान ही क्या,
जो काम ना आए वो ज्ञान ही क्या,
जो आंखों के सामने न ढली हो वो शाम ही क्या,
जो दूसरों के लिए दे दी जाए वह जान है क्या,
जो देश से ना वो मोहब्बत ही क्या।
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