शाम जो तेरे पहलू में ढलती है
फिर रात-दिन तुझसे मिलने को तरसती है
फिजाएं भी तुझे देखकर रंग बदलती हैं
छोड़ अपना रंग वो तेरे रंग में रंगती हैं
जो हवाएं तुझे छू कर गुजरती हैं
तेरी मोहब्बत के लिए वो भी तरसती हैं
ये घटाएं भी तुझसे मिलने को बरसती हैं
हुस्न तेरा देख गिरती हैं संभलती हैं
शमां जो तेरे कमरे में जलती है
तेरे ही इश्क़ में सारी रात पिघलती है
शाम जो तेरे पहलू में ढलती है
फिर रात-दिन तुझसे मिलने को तरसती है
- डोभाल गिरीश
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कि कभी खामोशी तो कभी शोर सुनाई देता है मुझे इन हवाओं में,
या मैं बिखरी हूँ, या किसी और का भी दिल टूटा है इन हवाओं में।-
वो सर्द हवाएं ओस की बूंदे
वो गुनगुनाते पक्षियों की आवाज मन को मोह लेती है।
वो चहकता हुआ मन और बारिश की बूंदे
संगीत की एक नई धुन चुरा लेती है
तुम्हारे सँग बीते हुए हर लम्हे को दिल
की स्याही से अल्फ़ाज़ों के रूप में यूँ बयाँ किया
मानो देखते ही दिल को मोह लेती है
आज भी तुम्हारी दुआओं में हमारा
नाम सबसे पहले आता है
ये खुशी हमारे हमारे दिल को
सुकून दे जाती है
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ये हवाएं जो तुम्हारी यादें संग लाती हैं,
कह दो इन्हें, ना गुज़रें हमारी गलियों से,
कम्बख़्त, जब भी आती हैं, तबाह कर जाती हैं।-
सुनो
यूँ ज़ुल्फ़ों को बांध के न रखा करो
हवाएँ ख़फ़ा खफा सी रहती है........
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ये हल्की-हल्की शर्द हवाएं,ये बारिश का मौसम,
मैं तुममें पूरा रहता हूं,तुम मुझमें क्यों रहती हो कम।-
सर्द हवाएँ भी असर नहीं करती आजकल
❣️❣️
तेरी यादों की रजाई ओढ़ कर सोता हूँ ।
❣️❣️-
ज़र्द पत्ते हैं ये जो तुम जिनको दोस्त कहते हो
हवाएँ तय करेंगी के कब ये उड़ के किधर जाएँगे
कूद कर 'धम्म' से सड़क पर, मुँह फेर कर चल देंगे
एक ज़रा सा ज़िन्दगी में जो आँधीयों के दौर आएँगे
तुम से मतलब है जब तक इन्हें, तब तक ये हरियाएँगे
जवाँ मौसम में ये, तेरी हर बात पर झूमेंगे, इठलाएँगे
मौसम ए खिज़ा जब भी तेरे दर पर दस्तक देगा
रंग बदले बदले से जनाब, इनके तब नज़र आएँगे
तू करेगा लाख मिन्नतें इनसे मगर फिर ये न समझेंगे
ग़म ए दौरां की मजबूरियाँ भी सब तुझको गिनाएँगे
छोड़ कर तड़पता हुआ तुझे यूँ ही कहीं चल देंगे
सूखे जज़्बात हैं, क्या समझता है, हौसला दिखाएँगे
ज़र्द पत्ते हैं ये जो तुम जिनको दोस्त कहते हो..-