साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ--(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना--
विष कहाँ पाया?-
कहते हो कि, मैं तुम्हारा क्या लगता हूँ,...
जबकि मेरी ग्रीवा तले ही तो तुम अपना,सांप पालते हो।-
बुजुर्गों से मिली विरासत को संभाल रखा हूं
खुद अपनी जान को मुश्किल में डाल रखा हूं
पता है की बना लेंगे मुझे भी निशाना किसी दिन
फिर भी कुछ सांपों को आस्तीन में पाल रखा हूं-
नचा सके इशारों पर आस्तीन के सांप को भी
अभी हमें भी एक हुनरमंद सपेरा बनना बाक़ी है ..-
अब मैं अपने आस्तीन में सांप पाल लेता हूँ
जब भी वो डसने को आये गिरेबान झाँक लेता हूँ-
अब इन हक़ीक़त के साँपों में दम कहा है,
डसने का काम कुछ जहरीले लोग कर रहे है,
और आप तो खामखां इन साँपो से डरते है,
लोग साँपो से नहीं, जहरीले लोगो से मर रहे है।-
सांप को पीला दो प्रेम का भी अमृत,
फिर भी वो जहर ही उगलते है,,
वैसे ही जिसके हृदय में हो स्वार्थ ए नफ़रत,
वो एक दिन व्यक्ति को जरूर छलते है।।-
दिल की साफ है वो इसीलिए
गुस्सा चेहरे पे नज़र आ जाता है
वरना दिल से साँप
कई दिख जाएंगे
महफ़िल में मुस्कुराते हुए-
ज़हर उगलना कभी मक़सद न था मेरा,
सांपों की नसलें मग़र बख़ूबी पहचानता रहा!-
🤔लोग कहते हैं तुम्हारी आस्तीन में
सांप🐍 रहते है मैंने कहा क्या करू
मेरा वजूद ही चन्दन का है ✍शैली 💞-