किसी को रुसवा करके,
क्या कर पाओगे तुम,
किसी का अच्छा करके देखो,
क्या पता ज़िन्दगी बदल जाए उसकी..!!-
हम छिपाते फिर रहे अपने हिज्र की बात
ये तरकीब तुम्हें रुसवा होने से बचाएगी।-
खुद भी रुसवा हुइ मुझे भी तार-तार कर गयी
दुनिया के सामने मुझको शर्मसार कर गयी
पहले तो छुप-छुपकर मिलती थी रकीब से
फिर एक रोज वो हद भी पार कर गयी-
आज तो हमारी कलम ने भी
हमसे रुसवा होकर पूछा
दिल देते ही क्यों हो
तोड़नेवालों के हाथ में
मैंने भी कहा यादों को टटोल कर
वो अजनबी अपना सा था
मिल गयी वो राह में
जैसे कोई सपना सा था
चाय के तबेले पे मुलाकात हुई पहली
हमें वहां देख वो मुस्कुरा के चली
उस चेहरे को देख पहली बार चाय पिली
चीनी कम चाय भी शहद जैसी लगी
मासूम सा चेहरा था उसका
नीची थी निगाहें
रूह तक बस गयी थी ऐसी थी अदाएं
पहली बार की मुलाकात थी
दिल दे दिया था उसको
बातों बातों में खो ही गए
समझ ना पाए उसको
अगली सुबह देखा था उसको,गैर किसी की बाहों में
जैसे दिल को क्षलनी किया फूल के ही काटों ने
बात हमारी सुन कर कलम भी रोया फूट फूट
अगली पंक्ति जो खिलने चला वो भी गया टूट-
मेरी मोहब्बत तो तेरी गली में ही रुसवा हो गई
मैं आया तेरी गली और तू बाहर भी न निकली-
बिन कहे वो सब समझता है,
फिक्र मेरी बेहिसाब करता है,
किसी शाम,
किसी महफिल में
रुसवा न हो जाऊँ मैं...
बस यही सोच वो खामोश़ रहा करता है;
अब उसे कैसे समझाऊँ
एक छोटी सी बात-
कि वो अक्स है मेरा,
अक्स भला कब आईने से जुदा हुआ करता है!
-
सखी ग माझी पुन्हा माझ्यावर रुसली
चढवताच तीला झाडावर कौतुकाच्या
भाराने तिच्या ती नाजूक फांदीही तुटली
अन् रुसू बाई माझी गाली खुदकन हसली
– Ashwini Gajbhiye✍️(शब्दाश्विनी)-
इश्क बदनाम हो गया, दोस्ती रूसवा हो गयी।
एतबार आज निलाम सरे बाजार हो गया।-