प्रेम में फूल तो सभी
देते है,
तुम मुझे देना एक
मोरपंख,
तेरे प्रेम को स्याही
बनाकर ,
मैं उसी मोरपंख से
लिखूंगी
एक नवीन प्रेम ग्रंथ...!!-
"मोरपंख ते माझ्या कान्हा च्या आठवणीत पुस्तकात सजलेल,
जनू ते माझ्याच रंगात रंगलेल."
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मोर पंख को कान्हा ने मुकुट में बांधा,
विरहिणी राधा को नहीं दिया काँधा।
दोनों ने प्रीत को अर्थ दिया फिर भी,
क्यूँ राधा को ना दिया सिंहासन आधा।-
हाँ....सुनिश्चित होता
एक भाव का
परिपक्व होना,
उतना कि....कार्तिक में
मोरनी के पंखों का
स्वतःत्याग.........
उपयोग में आना...
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उसी अंतराल के बाद
सतरंगी कोमल पंख
की क़लम को
श्वेत एहसास की दवात
में डुबो
कोरे कागज़ पर
श्वेत रोशनाई से कुछ
लिपि...किया
सो वाँचों ....जो है साँचों
कवि का कवित्व
अनिहित स्वामित्व
या है कोरी कल्पनाएँ!!-
तुम्हारी स्वछंदता, तुम्हारी निश्छल हँसी,
तुम्हारी सादगी, तुम्हारा बांँकपन,
तुम्हारी शरारत, तुम्हारी मोहक छवि,
तुम्हारा सारा रंग छटा बनकर बिखर जाता है।
उस मोर पंख में सिमटता जाता है,
हांँ! उस प्यारे से मोर पंख में,
वही मोर पंख, जो तुमने छोटी सी भेंट के रूप में
उपहार स्वरूप दिया था।
कहने को छोटी सी भेंट थी, मगर मेरे लिए अनमोल।
अपने सारे जज़्बात समेट कर दिया था तुमने मुझे,
हांँ जब-जब उसे स्पर्श करती हूँ,
तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श की अनुभूति होती है।
वो तुम्हारा अनकहा सा,
अपार स्नेह धीरे-धीरे तैर कर आ जाता है,
आँखों में, और बरसने लगती हैं बूंँदें,
मन भीगता जाता है उस बारिश की बूंँदों में,
गुम हो जाती हूँ, कुछ देर के लिए तुम्हारे ख़यालों में,
तुम्हारा वो कोमल अहसास, वो प्यारी सी स्मृतियांँ,
आज भी सुरक्षित हैं हृदय के किसी कोने में,
और सदा सुरक्षित रहेंगी, शायद जीवन पर्यन्त तक...।-
** मोरपंख सी रहती है
मोहब्बत हमारी, जो
मेरे दिल के पास से गुजरता
हैं, उसकी तकलीफ़ भी हम
खुद में सोख लेते हैं**..!!NAJ-
*हमारी जीवन*
*मोर पंख की तरह*
*रंग बिरंगी होनी चाहिए*
*तभी तो*
*जीवन में*
*हल्का पन रहेगा*
*और*
*हल्के पन से ही*
*हम*
*सुख-शान्ति का*
*अनुभव कर सकेंगे*
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